दादा कोंडके जयंती स्पेशल
- जन्म ८ अगस्त, १९३२, भोर
कृष्ण कोंडके, जिन्हें दादा कोंडके के नाम से जाना जाता है, एक मराठी अभिनेता और फिल्म निर्माता थे। वह मराठी फिल्म उद्योग में सबसे प्रसिद्ध व्यक्तित्वों में से एक थे, जो फिल्मों में उनके डबल मिनिंग संवाद के लिए प्रसिद्ध थे।
दादा कोंडके ने महाराष्ट्र के साथ कई राज्यों में लोकनाट्य के प्रयोग किए थे। ‘विच्छा माझी पूरी करा’ के १५०० प्रयोग किए और इसका आखिरी प्रयोग १९७५ में हैदराबाद में किया। इसके बाद दादा ने कभी भी नाटकों में काम नहीं किया। फिर उन्होंने भालजी पेंढारकर की फिल्म ‘तांबडी माती’ में काम किया और इसी तरह फिल्मों में एंट्री हो गई। इस फिल्म की शूटिंग कोल्हापूर में हुई थी। इसके बाद दादा ने फिल्म ‘सोगांड्या’ बनाई और वह मराठी फिल्मों के सुपरस्टार बन गए। उस समय के बॉलीवुड़ के रोमांटिक हीरो दिलीप कुमार, राजकुमार, जितेंद्र, शम्मी कपूर, देव आनंद, राजेश खन्ना की तरह मराठी फिल्म इंडस्ट्री में दादा कोंडके की इमेज बनी थी। दादा कोंडके की हाफ पैन्ट और गावठी डायलॉगबाजी के साथ डबल मिनिंग का तडका ही दर्शकों को भा जाता था, लेकिन सेंसरबोर्ड वाले हमेशा उनकी फिल्मों में ३०-३५ कट देते थे और फिर दादा को हर शॉट के बारे में समझाना पड़ता था।
मराठी में राम राम गंगाराम, पांडू हवालदार, आली अंगावर, पळवा पळवी, एकटा जीव सदाशिव, आंधळा मारतो डोळा, ह्योच नवरा पाहिजे, मुका घ्या मुका के साथ हिंदी में तेरे मेरे बीच में अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में, आगे की सोच, खोल दे मेरी जुंबा की निर्मिती करके गुजराती भाषा में भी फिल्में बनाई।
मराठी फिल्मों में सिल्वर जुबली सिनेमा देने वाला एक मात्र सुपरस्टार थे दादा कोंडके और इस बात की दखल गिनिज बुक ऑफ रिकॉर्ड ने ली थी।
कृष्ण कोंडके, जिन्हें दादा कोंडके के नाम से जाना जाता है, एक मराठी अभिनेता और फिल्म निर्माता थे। वह मराठी फिल्म उद्योग में सबसे प्रसिद्ध व्यक्तित्वों में से एक थे, जो फिल्मों में उनके डबल मिनिंग संवाद के लिए प्रसिद्ध थे।
दादा कोंडके ने महाराष्ट्र के साथ कई राज्यों में लोकनाट्य के प्रयोग किए थे। ‘विच्छा माझी पूरी करा’ के १५०० प्रयोग किए और इसका आखिरी प्रयोग १९७५ में हैदराबाद में किया। इसके बाद दादा ने कभी भी नाटकों में काम नहीं किया। फिर उन्होंने भालजी पेंढारकर की फिल्म ‘तांबडी माती’ में काम किया और इसी तरह फिल्मों में एंट्री हो गई। इस फिल्म की शूटिंग कोल्हापूर में हुई थी। इसके बाद दादा ने फिल्म ‘सोगांड्या’ बनाई और वह मराठी फिल्मों के सुपरस्टार बन गए। उस समय के बॉलीवुड़ के रोमांटिक हीरो दिलीप कुमार, राजकुमार, जितेंद्र, शम्मी कपूर, देव आनंद, राजेश खन्ना की तरह मराठी फिल्म इंडस्ट्री में दादा कोंडके की इमेज बनी थी। दादा कोंडके की हाफ पैन्ट और गावठी डायलॉगबाजी के साथ डबल मिनिंग का तडका ही दर्शकों को भा जाता था, लेकिन सेंसरबोर्ड वाले हमेशा उनकी फिल्मों में ३०-३५ कट देते थे और फिर दादा को हर शॉट के बारे में समझाना पड़ता था।
मराठी में राम राम गंगाराम, पांडू हवालदार, आली अंगावर, पळवा पळवी, एकटा जीव सदाशिव, आंधळा मारतो डोळा, ह्योच नवरा पाहिजे, मुका घ्या मुका के साथ हिंदी में तेरे मेरे बीच में अंधेरी रात में दिया तेरे हाथ में, आगे की सोच, खोल दे मेरी जुंबा की निर्मिती करके गुजराती भाषा में भी फिल्में बनाई।
मराठी फिल्मों में सिल्वर जुबली सिनेमा देने वाला एक मात्र सुपरस्टार थे दादा कोंडके और इस बात की दखल गिनिज बुक ऑफ रिकॉर्ड ने ली थी।
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