एक थी मीना कुमारी


३१ मार्च १९७२  का दिन था, वो जबकि काल  होले से आया और तपाक से अपने साथ सफ़ेद साडी में लिपटी हुई हिंदी फिल्मों की बेहतरीन अदाकारा मीना कुमारी को हमेशा हमेशा के लिए वहां ले गया, जहां से कोई कभी नहीं लौटता।

सिर्फ चंद लफ्ज हवा में गूंजते हैं -
टुकड़े  टुकड़े दिन बीता ,
धज्जी -धज्जी रात मिली ,
जिसका जितना आँचल था ,
उतनी ही सौगात मिली ...

नई पीढ़ी के लोग तो मुझसे यह भी कहने में नहीं चुकते।  क्या मीना कुमारी इतनी बड़ी आर्टिस्ट थी, या फिर यह कोई बनी बनाई कहानी, पर कौन जानता है कि अब इतनी महान अभिनेत्री कभी पैदा भी होगी या ....

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