साहित्य सत्कार समारोह में आचार्य विजय रत्नसुंदरसूरीश्वरजी द्वारा लिखित ३०० वीं पुस्तक का लोकार्पण समारोह
साहित्य सत्कार समारोह में
आचार्य विजय रत्नसुंदरसूरीश्वरजी द्वारा लिखित ३०० वीं पुस्तक 'मारूं भारत, सारूं भारत' का लोकार्पण समारोह
१० जनवरी, २०१६ को
मुंबई के सायन स्थित सोमैया ग्राऊन्ड पर
होगा। परम पूज्य आचार्य विजय
रत्नसुंदरसूरीश्वरजी को किसी परिचय की
जरुरत नहीं है। यह हीरे-मोती जैसे
मनमोहक व मानवता की सुंदरता और
आकर्षणशीलता के रुप में भारत देश के महान
जैन संत है। साथ ही उन्होंने अब तक
विदेशों की यात्रा नहीं की है, तो भी
उनके विचार और अनुयाई पूरी दुनिया में
है, जिसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं है।
वाणी की प्रभावकता, साहित्य की सृजनात्मकता एवं प्रकृति की सरलताका त्रिवेणी संगम अर्थात राष्ट्रहितचिंतक, पूज्यपाद, जैनाचार्य श्रीमद्विजय रत्नसुंदरसूरीश्वरजी महाराज का मूल नाम रजनी था, जिनका जन्म ५ जनवरी १९४८ में गुजरात के देपला नामक गांव में हुआ। पिता दलीचंदभाई तथा माता चंपाबेन के सुसंस्कारों के फलस्वरुप पुत्र रजनी १९ वर्ष की युवावय में पिता के साथ जैन दीक्षा स्वीकार करके मुनि रत्नसुंदरविजय बने। तब से लेकर आज तक तकरीबन ४५ वर्ष के सुदीर्घ संयमपर्याय में अपनी वाणी व लेखनों से आचार्यश्री ने लाखों लोगों के मन-जीवन तथा परिवार में शील-सदाचार-सौहार्द व श्रद्धा की प्रतिष्ठा की है। केवल जैन समाज ही नहीं, संपूर्ण राष्ट्र के जनहित को सुरक्षित करने के सद्-उद्देश्य से आचार्यश्री आज तक २९९ पुस्तकों का सृजन कर चुके हैं जिनमें से कई पुस्तकें ९ भाषाओं में प्रकाशित हुई हैं। कम्प्यूटर-इंटरनेट के आधुनिक युग में भी आचार्यश्री के साहित्य को पाठकों का सुंदर प्रतिसाद प्राप्त हुआ है। उनकों सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' से सम्मानित किया गया है। इनके कई पुस्तकों को अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, सिंधी, उर्दू, फ्रेंच आदि भाषाओं में अनुवादित किया गया है और पूरे देश भर में ६ मिलियन से अधिक पुस्तकें वितरीत की गई है। उनके शब्दों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अरिहंत टीवी, पारस टीवी और सोहम टीवी के माध्यमों से सुना जा रहा है। कई लोगों को उनके भाषण के माध्यम से जीवन में लाभ हुआ है।
चार साल तक आचार्यश्री दिल्ली में थे और तब उनकी मुलाकात सत्तारुढ़ और कई अन्य पार्टीयों के नेताओं से हुई और उन्होंने शांती का संदेश फैलाने के साथ राष्ट्र और समाज की भलाई के लिए दिशा दिखाई है। गुरु महाराज के अनुसार, लोग फरक महसूस करते है, जब उन्हें सही दिशा और सही मार्ग दिखाया जाए।
साहित्य सत्कार समारोह के कई अनोखे आकर्षण है और यह समारोह १ जनवरी से १० जनवरी, २०१६ तक होगा। इन १० दिनों के कार्यक्रम में अनेक प्रकार के उपक्रमों का आयोजन किया जाएगा। फिल्म झोन – जीवन यात्रा, फ्लाय झोन – साहित्य यात्रा, फन झोन – आनंद यात्रा, फ्लेम झोन – परिवर्तन यात्रा जैसे कई यात्राओं का दर्शन इस समारोह में होने वाला है। रजवाड़ी नक्शीकाम की उत्तम कला को जीवित करने वाला, ४०० फीट लंबा और ६० फीट ऊंचा भव्यातिभव्य प्रवेशद्वार है, जिसमें शंखेश्वर तीर्थस्थान है। विशाल प्रवचन मंडप, मां सरस्वती मंदिर, साधु-साध्वीजी की कुटिर और सभी अतिथियों की भोजन व्यवस्था अत्यंत सुचारु रुप से इस विशाल भोजन मंडप में की जाएगी।
१० जनवरी, २०१६ को प्रात ९ बजे आचार्य विजय रत्नसुंदरसूरीश्वरजी द्वारा लिखित ३०० वीं पुस्तक 'मारूं भारत, सारूं भारत' का लोकार्पण होने वाला है। यह पुस्तक हिंदी, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं में है। साहित्यसृजन के इतिहास का है यह सुवर्ण पृष्ठ है। इस समारोह में लाखों की तादाद में भक्तगण उपस्थित रहने वाले है।
वाणी की प्रभावकता, साहित्य की सृजनात्मकता एवं प्रकृति की सरलताका त्रिवेणी संगम अर्थात राष्ट्रहितचिंतक, पूज्यपाद, जैनाचार्य श्रीमद्विजय रत्नसुंदरसूरीश्वरजी महाराज का मूल नाम रजनी था, जिनका जन्म ५ जनवरी १९४८ में गुजरात के देपला नामक गांव में हुआ। पिता दलीचंदभाई तथा माता चंपाबेन के सुसंस्कारों के फलस्वरुप पुत्र रजनी १९ वर्ष की युवावय में पिता के साथ जैन दीक्षा स्वीकार करके मुनि रत्नसुंदरविजय बने। तब से लेकर आज तक तकरीबन ४५ वर्ष के सुदीर्घ संयमपर्याय में अपनी वाणी व लेखनों से आचार्यश्री ने लाखों लोगों के मन-जीवन तथा परिवार में शील-सदाचार-सौहार्द व श्रद्धा की प्रतिष्ठा की है। केवल जैन समाज ही नहीं, संपूर्ण राष्ट्र के जनहित को सुरक्षित करने के सद्-उद्देश्य से आचार्यश्री आज तक २९९ पुस्तकों का सृजन कर चुके हैं जिनमें से कई पुस्तकें ९ भाषाओं में प्रकाशित हुई हैं। कम्प्यूटर-इंटरनेट के आधुनिक युग में भी आचार्यश्री के साहित्य को पाठकों का सुंदर प्रतिसाद प्राप्त हुआ है। उनकों सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' से सम्मानित किया गया है। इनके कई पुस्तकों को अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, सिंधी, उर्दू, फ्रेंच आदि भाषाओं में अनुवादित किया गया है और पूरे देश भर में ६ मिलियन से अधिक पुस्तकें वितरीत की गई है। उनके शब्दों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अरिहंत टीवी, पारस टीवी और सोहम टीवी के माध्यमों से सुना जा रहा है। कई लोगों को उनके भाषण के माध्यम से जीवन में लाभ हुआ है।
चार साल तक आचार्यश्री दिल्ली में थे और तब उनकी मुलाकात सत्तारुढ़ और कई अन्य पार्टीयों के नेताओं से हुई और उन्होंने शांती का संदेश फैलाने के साथ राष्ट्र और समाज की भलाई के लिए दिशा दिखाई है। गुरु महाराज के अनुसार, लोग फरक महसूस करते है, जब उन्हें सही दिशा और सही मार्ग दिखाया जाए।
साहित्य सत्कार समारोह के कई अनोखे आकर्षण है और यह समारोह १ जनवरी से १० जनवरी, २०१६ तक होगा। इन १० दिनों के कार्यक्रम में अनेक प्रकार के उपक्रमों का आयोजन किया जाएगा। फिल्म झोन – जीवन यात्रा, फ्लाय झोन – साहित्य यात्रा, फन झोन – आनंद यात्रा, फ्लेम झोन – परिवर्तन यात्रा जैसे कई यात्राओं का दर्शन इस समारोह में होने वाला है। रजवाड़ी नक्शीकाम की उत्तम कला को जीवित करने वाला, ४०० फीट लंबा और ६० फीट ऊंचा भव्यातिभव्य प्रवेशद्वार है, जिसमें शंखेश्वर तीर्थस्थान है। विशाल प्रवचन मंडप, मां सरस्वती मंदिर, साधु-साध्वीजी की कुटिर और सभी अतिथियों की भोजन व्यवस्था अत्यंत सुचारु रुप से इस विशाल भोजन मंडप में की जाएगी।
१० जनवरी, २०१६ को प्रात ९ बजे आचार्य विजय रत्नसुंदरसूरीश्वरजी द्वारा लिखित ३०० वीं पुस्तक 'मारूं भारत, सारूं भारत' का लोकार्पण होने वाला है। यह पुस्तक हिंदी, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं में है। साहित्यसृजन के इतिहास का है यह सुवर्ण पृष्ठ है। इस समारोह में लाखों की तादाद में भक्तगण उपस्थित रहने वाले है।
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