सुधा चंद्रन ने कहा बूरे वक्त में भगवान की ताकत सबसे बड़ी होती है
केरल के
कन्नूर में २१ सितंबर,
१९६४ में जन्मी अभिनेत्री-डांसर सुधा चंद्रन की जीवनगाथा भी निराली किस्म की है।
सुधा को बचपन से ही नृत्य का शौक था और इसी वजह से १६ साल की उम्र तक भरत नाटयम की
विधिवत शिक्षा लेती रही, लेकिन एक हादसे ने सुधा की जिंदगी
पूरी तरह से बदल गई।
हर साल
सुधा के माता-पिता कुलदेवता के दर्शन के लिए जाते थे और इसी रितिरिवाज के चलते उस
साल भी सभी लोग साउथ में कुलदेवता के दर्शन के लिए गए थे। कुलदेवता का अभिषेक करने
के बाद सभी लोग बस से घर लौट रहे थे, तभी रास्ते में उनकी बस का एक्सीडेंट हो गया। इसी एक्सीडेंट में सुधा का
पांव बुरी तरह से जख्मी हो गया। अन्य यात्रियों के साथ सुधा को भी हॉस्पिटल में
एडमीट किया गया। डॉक्टर ने पांव को बिना साफ किए ही स्टिच करके प्लास्टर पेरिस
चढ़ा दिया। तभी सुधा ने डॉक्टर से कहा था कि आप बिना क्लिन करके यह कैसे कर रहे है
? तभी डॉक्टर ने कहा कि तुम ऐसे सवाल नहीं पूछ सकती, लेकिन एक-दो दिन के बाद मैंने डॉक्टर से कहा कि मुझे पैर में कुछ भी फिल
नहीं हो रहा है। तभी डॉक्टर ने कहा कि ऐसा ही होता है। मुझे पांचवे दिन यह एहसास
हुआ कि मेरा पैर कुछ भी रिस्पॉन्स नहीं दे रहा है और काला भी पड़ रहा है। इस बारे
में डॉक्टर ने कहा कि तुम इस बारे में बहुत सोचती हो, लेकिन
डोंट वरी, सब ठिक हो जाएगा। मैंने कुछ मेडिसीन लिखे है, नर्स के हाथों भिजवाता हूं।
इसके
बाद मेरे पैरेंट ने डिसिजन लिया और मुझे लेकर चैन्नई आ गए। बस हादसे में बाकी सारे
लोग रिकवर हो गए थे,
लेकिन मेरी हालत जैसी की वैसी ही थी। (जब भी प्लास्टर पैरिस
लगाते है, वह ज्यादा टाइट नहीं होना चाहिए, क्योंकि उससे बल्ड का सर्कुलेशन रुक जाता है) कोच्चि से ९ घंटे का सफर
करके मद्रास आ गए। यहां के हॉस्पिटल में एडमिट किया गया, जब
डॉक्टर प्लास्टर पैरिस निकाल रहे थे, तब उन्होंने कहा कि यह
क्या हो गया है? (इतना मैंने सुना) डॉक्टर १५ दिनों तक कोशिश
करते रहे, लेकिन कुछ ठिक नहीं हुआ। जब डॉक्टर चेक करने आते
थे तो मुंह पर मास्क लगाकर आते थे, तब मुझे लगा कि इन्फेक्शन
बढ़ गया है। पैर साफ करते थे तब मुझे कुछ भी एहसास नहीं होता था। मैंने डॉक्टर से
कहा कि मुझे कोई दर्द क्यों नहीं हो रहा है ? तभी डॉक्टर ने
कहा कि ठीक हो जाएगा। इसी बात से मुझे एहसास हुआ कि कुछ तो पॉब्लम है। डॉक्टरों ने
१५-१६ दिनों तक पूरी कोशिश की। उस समय मैं १६ साल की थी। इसलिए डॉक्टर ने मेरे माता-पिता
से बातचीत की। उसके बाद पापा रोते हुए मेरे पास आए और कहा कि बेटा कल तुम्हारी
सर्जरी है, मैंने कहा कैसे सर्जरी ?
पापा ने कहा कि डॉक्टरों ने हमें २४ घंटे का समय दिया है,
क्योंकि तुम्हारा पांव काटना पडेगा और मैंने साइन कर दिया है। मैंने कहा, आपने मुझे बिना पूछे कैसे साइन किया ? लेकिन मैं उस
समय मेजर होती तो साइन नहीं करती। दूसरे दिन मुझे ऑपरेशन थिएटर में लेकर जा रहे थे, उस समय मैंने पापा से कहा कि मैं मेरा पांव आखिरी बार देख सकती हूं, क्योंकि इस एक्सिडेंट की वजह से मैं कभी भी डांस नहीं कर सकती, यह रियलाइज हो गया था। मैंने पांव आखिरी बार देखा और उसके बाद डॉक्टरों
ने पांव की सर्जरी की।
सर्जरी
होने के कुछ दिनों बाद में घर गई। तब मुझे एहसास हुआ कि हिंदुस्तान में एक चीज
फ्री में मिलती है और वह है एडवाइज। कई रिश्तेदार मुझे देखने के लिए आते थे और
फ्री में एडवाइज देकर जाते थे। उस समय मुझे बहुत गुस्सा आता था। मैंने कुलदेवता से
मन में सवाल किया कि कुलदेवता के मंदिर से आ रहे थे तभी यह हादसा हुआ है, इसका जवाब भगवान को देना होगा। आज मैंने
निर्णय लिया है कि मैं तुम्हें मानना नहीं छोडूंगी, लेकिन तब
तक पूजा भी नहीं करूंगी, जब तक आप मुझे अपना होने का एहसास
नहीं करवाते। बूरे वक्त में भगवान की ताकत सबसे बड़ी होती है, क्योंकि भगवान ही करिश्मा दिखा सकता है।
उन
दिनों डॉ. सेठी के जयपुर पैर (कुत्रिम पैर) बहुत ही फेमस थे और एवार्ड मिलने की
वजह से वह काफी बिजी भी रहते थे। मैंने उनका नंबर ढूंढ निकाला और उनके लिए मैसेज
छोड़ा कि मुझे मिलना है। मुझे लगा कि वह मुझसे संपर्क नहीं करेंगे, लेकिन मुझे तुरंत ही मैसेज आया कि डॉक्टर
शेट्टी आपसे मिलना चाहते है और आप आ जाइए। डॉक्टर सेठी से मैंने सवाल किया कि क्या
यह फुटवेयर लगाने से मैं डांस
कर सकती हूं ?
डॉक्टर ने कहा कि निश्चित रुप से डांस कर सकती हो। उस समय मुझे बहुत ही सिंपल लगा, लेकिन यह उतना आसान नहीं था, क्योंकि इस प्रक्रिया में दो से ढाई साल लग गया। जब मैं फुटवेयर पहनकर
डांस करने की कोशिश करती थी, तो कितनी बार गिर जाती थी, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मां ने कहा कि तुम चल पाती हो, इतना ही ठीक है हमारे लिए, फिर नृत्य करने की जिद्द
क्यों पकड़ी है ? यह संभव नहीं है ?
मैंने कहा कि डांस ही मेरी जिंदगी है, मुझे करने दो। मैंने
मन में सोचा था कि मैं कुछ ऐसा करुंगी जिससे मेरे माता-पिता को गर्व हो।
मैंने
भगवान से कहा कि मुझे एक मौका दिजिए कि लोग कहे कि यही है सुधा चंद्रन। मैं एक दिन
प्रैक्टिस करती थी, तो छह दिन तक बिस्तर पर पड़ी रहती थी। छह-आठ महिने के बाद मुझे लगा कि
मैं कुछ कर सकती हूं। जनवरी, १९८४ में मैंने पापा से कहा कि
मैं डांस करना चाहती हूं। मैंने काफी दिनों तक प्रैक्टिस की है और अब स्टेज पर
परफॉर्म करना चाहती हूं। पापा ने छोटे से ऑडोटोरियम में कुछ गिने-चुने हितचिंतको
बुलाया और मेरा डांस का शो किया। शो देखकर लोगों ने तालियों से स्वागत किया और सुधा
फिर से डांस करने लगी।
उनकी इस
अद्धूभूत सफलता ने हर किसी को अचंभित कर दिया। अखबारों में सुधा की कहानी छपने लगी।
तभी साउथ के जाने-माने फिल्म निर्माता रामोजी राव की नजह उनकी कहानी पर पड़ी और उन्होंने
१९८४ में तेलुगू में मयूरी नाम की फिल्म बना डाली। इसकी सफलता से अभिभूत होकर दो साल
बाद ही रामोजी राव ने टी. रामाराव के निर्देशन में हिंदी फिल्म ‘नाचे मयूरी’ बनाई और पूरी
दुनिया को मालूम हो गया कि सुधा चंद्रन ने किस तरह से तमाम मुश्किलों को पीछे धकेल
दिया।
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