कलियुग का मानव

हर कोई अपने-अपने नसीब की खाता है

फिर भी भगवान को ही दोष देता है


हर काम के लिए भगवान के सामने झोली फैलाता है

लेकिन काम होने के बाद भगवान को ही भूल जाता है


मानव जाती बहुत ही स्वार्थी किस्म की है

जिस्म बेचकर भी ढेर सारा पैसा कमाती है


अपना काम निकालने के लिए झुक जाती है

नहीं माने तो दो और दो चार कर देती है


-- लेखक शंकर मराठे

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