‘देवर बिना अंगना...’ मेरे निर्देशकीय कौशल का आईना होगी – निर्देर्शक अमिताभ कुमार
भोजपुरी सिनेमा
के उभरते अमिताभ कुमार अपनी ताजातरीन फिल्म ‘देवर बिना अंगना ना
सोभे’ राजा को लेकर व्यस्त है। अमिताभ की यह चौथी फिल्म है, लेकिन वह इसको कुछ यूं लगे हो, गोया, कोई नया प्रतिभागी किसी प्रतियोगिता में प्रथम आने की तैयारी में तन्मय भाव
से लगा हुआ हो। हाल ही में अमिताभ से उनकी फिल्म और उनके फ्यूचर प्लान को लेकर विस्तृत
बातचीत हुई। प्रस्तुत है, वार्तालाप के संक्षिप्त अंश –
‘देवर बिना...’ शीर्षक तो सामान्य भोजपुरी फिल्मों जैसा
ही है। फिर इस शीर्षक में खास बात क्या है ?
-- पटकथा और
निर्देशन – फिल्म का प्रस्तुतिकरण है उसे औरों से अलग करता है। ‘देवर बिना अंगना ना सोभे राजा’ शीर्षक से भले सामान्य
लग रहा हो, मगर इसमें पारिवारिक रिश्तों की मर्यादा और उनका निर्वहन
अलग और अनोखे अंदाज में है। प्राय सौतेले भाई या सौतेली मां और उनके बेटे के बीच के
रिश्ते को एक ‘फिक्सड फार्मेंट’ में ढ़ाल
दिया गया है, लेकिन इस सौतेलपन में भी हम अपनत्व ढूंढ़ सकते है, निकाल सकते है। हमारे रिश्ते बड़े पावन और परिपक्व होते है, हमारा दृष्टिकोण कैसा है उस पर इन संबंधों की रुपरेखा तिरती दिखती है।
इस
फिल्म में मां-बेटा की कहानी है अथवा भाई-भाई की ?
--शीर्ष में
देवर है, तो लाजिमी है भाई-भाई के बीच की कहानी होगी।
कौन
है ये दोनों भाई और क्या-क्या करते हैं ?
-- अविनाश शाही
और सुशील सिंह ‘शम्मी’ दो भाई हैं। बीच में
मोनालीसा, अवधेश मिश्रा है। यह किसकी भाई है और कौन है देवर, जिसके बिना अंगना सूना पड़ जाता है। इसे हम अभी नहीं बताएंगे। हों, इतना जरुर बता दें कि यह एक बिल्कुल ही भावनात्मक कहानी है...
इसमें
और कौन-कौन से कलाकार हैं ?
-- अविनाश, सुशील, मोनालीसा के अलावा जो मुख्य कलाकार हैं – उनमें
दुर्गेश कुमार सिन्हा, सोनम तिवारी, नितेश
सिन्हा और आनंद मोहन के नाम प्रमुख है। फिल्म कैसी होगी, इसका
आंकलन आप इस बात से कीजिए कि बिहार के कला-संस्कृति मंत्री क जिम्मेदारी के साथ-साथ
इस फिल्म की कहानी सुनने के बाद उन्होंने गीत-संगीत का जिम्मा खुद ले लिया। यही नहीं, उन्होंने कहा, मैं भी ऐसी फिल्म का हिस्सा बनना चाहता
हूं सो उनके लिए मोनालीसा के बड़े भाई का एक विशेष चरित्र गढ़ा गया जो विनय भईया करेंगे।
ऐसी फिल्म के लिए उत्साहित करने के लिए विनय (भईया) बिहारी और अपने दोनों निर्माता
प्रदीप कुमार गुप्ता और महेशकुमार सिन्हा का आभारी रहूंगा।
एक
दशक से आप इस क्षेत्र में सक्रिय हैं... अपने कैरियर का लेखा-जोखा दें ?
-- अपना गांव
पिपरा नारायणपुर (सिवान, बिहार) में सन २००४ में छोड़ दिया।
दिल्ली जाकर खूब म्यूजिक वीडियो किया। पैसे आ रहे थे, सो उसी
में रमा रहा, लेकिन २००७ में एक संयोग बना और गीतकार-निर्माता
मुंडराज नागर के लिए एक हिंदी फिल्म बना डाली – ‘पगडंडी-सक समाज।
उसके बाद भोजपुरी में दो की – ‘आंखियां जब से लडल’ और ‘दिल दीवाना भईल तोहरा प्यार में’, यह मेरी तीसरी भोजपुरी फिल्म है।
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