‘डेण्जरस’ है अक्षय यादव
भोजपुरी फिल्मोद्योग में हाल के वर्षों में जो चेहरे कुछ नया कर दिखाने में सफल रहे हैं, उनमें अक्षय यादव का नाम तेजी से आगे आया है। अक्षय नए नहीं है, लेकिन चुन-चुनकर काम करते रहने की वजह से वह निरंतर परदे पर सक्रिय नहीं रह पाए। दूसरी तरफ उनके मन मुताबिक काम का नहीं मिलना भी बीच-बीच में ओझल रहने का कारण रहा। रजतपट पर अक्षय यादव का पर्दापण तो एक दशक पूर्व ही मनोज तिवारी स्टारर ‘भईया हमार’ से हो चुका था। फिर उसके बाद ‘लागी छूटे ना’ में भी वह दिखाई पड़े। लेकिन उनके अंतर के अभिनेता की इच्छाएं दमित ही रह गई। आगे अक्षय को महुआ टीवी का चर्चित धारावाहिक ‘बड़की मलकाईन’ में एक बड़ी भूमिका मिल गई। जवाहिर के रुप में अक्षय यादव टीवी पर एक लंबे अर्से तक छाए रहे। उसके बाद हिंदी धारावाहिक ‘बेटियां’ और ‘बालिका वधू’ में भी उनको अच्छा काम मिला। अक्षय टीवी पर काम करके पैसे तो कमा रहे थे, लेकिन उनको अंदर का कलाकार संतुष्ट नहीं था। उधर जिस तरह की भूमिकाएं उनको फिल्मों में ऑफर हो रही रही थी, वह और भी दु:खदायी था। यद्यपि उनको ग्रेसी सिंह के साथ लाला दमानी की फिल्म ‘राधा कैसे ना जले’ में भी एक भूमिका मिली और उन्होंने किया भी बेहतर अभिनय। लेकिन बात बनी नहीं। फिर अक्षय ने दोस्तों के साथ मिलकर एक फिल्म बना ही डाली – ‘धमाचौकड़ी’। इसमें उनको मुकेश तिवारी, संजय मिश्रा के साथ काम करने का मौका मिला। लेकिन, जी यहां भी नहीं भरा। वह फिर भोजपुरी में लौटे। पर इस बार बदले अंदाज में। अभी अभी मिथिलेश अविनाश की दो फिल्में है – ‘डैण्जरस’ और ‘लगा देब जान की बाजी’। पहली में स्वाथी भाई है, तो दूसरे में नक्सली बाबा। इसके बाद भी इनकी तीन फिल्में कतारबद्ध हैं – ‘सिरफिरा’, ‘सपने साजन के’ और ‘दिल में समा कर देखो’।
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