अमिताभ बच्चन और फिल्म ‘तीन’

इन दिनों फिल्म तीन का प्रमोशन जोरो-शोरों से चल रहा है और खास करके अमिताभ बच्चन बहुत ही सक्रिय हो गए है। युवा और नौजवान कलाकार की तरह अमिताभ भी इस उम्र में काफी भाग-म-भाग कर रहे हैं। नोवोटेल होटेल में फिल्मतीनको लेकर अमिताभ बच्चन से बातचीत करने का मौका मिला। बिग बी ने कई बातों का बेबाक जवाब दिए और कई दिलचस्प बातें भी शेयर की हैं।
फिल्म तीन में आपका रोल किस तरह का है ?
-- इसमें जॉन बिश्वास का कैरेक्टर निभाया है, जो बहुत ही कमजोर है और साथ ही उम्रदराज भी है। है। इतनी उम्र होने के बावजूद भी अपनी पोती की खोजबीन करते है और वह भी स्कूटर चलाकर। यह देखने वाली बात है।
इस फिल्म में स्कूटर चलाने का अनुभव कैसा रहा ?
-- वैसे तो 'स्कूटर और बाइक मैंने कम ही चलाई हैं, लेकिन जब मुझे पता चला कि इस फ़िल्म में मुझे स्कूटर चलाना है, तो मैंने कहा कि 'जलसा' में एक स्कूटर भेज दो, जिस पर मैं प्रैक्टिस कर सकूं''। वो कहते हैं कि बैलेंस के मामले में स्कूटर, बाइक की तुलना में ज़्यादा चुनौतिपूर्ण है। स्कूटर चलाने के अलावा मैं फ़िल्म में फुटबॉल भी खेला है।
फिल्म पीकू’ के बाद फिर एक बार आप फिल्म ‘तीन’ में भी दादाजी बने हैं तो इसका
अनुभव कैसा रहा और क्या किरदार निभाते वक्त आपने निजी जीवन के अनुभव
को भी इस्तेमाल किया है ?
-- वैसे तो मैं निजी जीवन में पिता, दादा और नाना भी हूं। इस तरह से हमारी परफॉर्मेंस में कहीं न कहीं वह दिखाई दे जाता है, लेकिन फिल्म का लेखक हमारे लिए जो पटकथा या अनुवाद लिखता है, हम बस उसी का उपयोग करते हैं।
 फिल्म तीन के निर्माता-निर्देशक के साथ काम का अनुभव कैसा रहा?
-- दोनों ही कोलकाता से ही हैं और वे बहुत ही मेहनती व अनुभवी हैं। साथ ही उनके साथ जो भी बातचीत हुई थी, सभी में वे खरे साबित हुए हैं। इसके अलावा फिल्म का कोई सेट नहीं है, जो भी हैं, वह नेचुरल लोकेशन पर ही शूट हुआ है। दर्शकों के बीच शूटिंग करने में बहुत मजा आता है।
कोलकाता से आपने अपने कैरियर की शुरुआत की तो आपको अभी भी बहुत लगाव होगा कोलकाता शहर से...
-- मैंने १९६२ में कोलकाता शहर में पहली बार नोकरी की थी और मैंने इस शहर में ७-८ साल का लंबा सफर तय किया है। इस लिहाज मुझे बहुत ही लगाव है। पहली बार पैसे कमाने का मौका मुझे इस शहर ने ही दिया था, तो मैं कैसे भूल सकता हूं।
इस फिल्म में क्यों रे... यह गीत गाने का अनुभव कैसा रहा ?
-- सच कहूं तो मैं बहुत ही बेसूरा गायक हूं, लेकिन निर्माता-निर्देशक ने मुझे यह गाना गाने को कहा था और इसलिए मैंने यह गाना गाया है। यह गीत गाने के लिए मैंने काफी रियाज किया और इस गीत को बेहतर गाने का प्रयास किया है।
आपने पहला गाना फिल्म मि. नटवरलाल में गाया था, तो उस वक्त गाने का अनुभव कैसा आया था ?
-- पुराने जमाने की बात ही कुछ अलग है। फिल्म मि. नटवरलाल में मैंने पहला गाना गाया था। यह गाना महबूब स्टूडियों में रिकॉर्ड किया गया था। मैंने जब गाने की रिकॉर्डिंग कर रहा था तो मेरे पीछे १५०-२०० म्यूजिशियन संगीत दे रहे थे। लेकिन अब जमाना बदल गया है। इस युग में ऐसी-ऐसी मशीन उपलब्ध है कि आवाज को उस मशीन में डालते और गाना बनकर बाहर आ जाता है।
आज हिंदी सिनेमा में वक्त बदल रहा है। 'नीरजा', 'मसान', 'कहानी', 'लंच बॉक्स' जैसी इनडेफ्थ फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर जगह मिल रही है। इस बदलाव को आप कैसे महसूस कर रहे हैं?
-- ऐसा बदलाव दर्शकों की वजह से हो रहा है। ऑडियंस ही इस तरह की फिल्मों को स्वीकार रही है। आज दुनिया में कई अन्य साधन भी उपलब्ध हैं, जिसकी वजह से ऑडियंस को कई और चीजें व उनके काम को देखने का मौका मिलता है। इस तरह से हमारे पास भी ऐसी चुनौती हो गई है कि हम ऐसी फिल्में बनाएं, जिसे हमारे दर्शक सिनेमाघरों तक पहुंच सकें।  


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